Bana rahe yeh Ahsas - 1 in Hindi Moral Stories by Sushma Munindra books and stories PDF | बना रहे यह अहसास - 1

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बना रहे यह अहसास - 1

बना रहे यह अहसास

सुषमा मुनीन्द्र

1

घटना सिर्फ एक बार घटती है जब अपनी प्रामाणिकता में वस्तुतः घट रही होती है। वही घटना स्मृति में बार-बार घटती है। विचारों में भिन्न तरह से घटती है। विचारों के अनुसार घटना को महसूस करना उतना ही सच होता है, जितना प्रामाणिकता में घटना का वस्तुतः घटित होना। घटना का परिणाम भले ही उस एक मुश्त समय का अनुभव हो लेकिन विचार के आधार पर घटना का परिप्रेक्ष्य, उद्देश्य, कारण, महत्व अलग असर लिये होता है। यह असर अक्सर सम्पूर्ण जीवन का सबूत बन जाता है। वे परिणाम, प्रभाव, आभास, अनुभूतियाँ, जीवन को बनाने-बिगाड़ने में जिनकी खास भूमिका नहीं होती, स्मृति से डिलीट हो जाती हैं लेकिन वे संवाद और दृश्य जो जीवन को एक श्रेणी देते हैं अक्सर, खास कर अंतिम समय में ऐसे सक्रिय हो जाते हैं कि कमजोर स्मरण शक्ति वाले व्यक्ति हतप्रभ हो जाते हैं, उन्हें कितना अधिक याद है।

दिल्ली के हार्ट रिसर्च सेन्टर में भर्ती अम्मा के आखिरी लेकिन सम्पन्न बरस।

बहुत कुछ याद कर रही हैं अम्मा।

वे संवाद, दृश्य, घटनायें ............................. जिन्होंने वैभव की मालकिन होने का बोध नहीं होने दिया। साजिशें तैयार करती माताराम (सास) की राजनीति, असन्तुष्ट पप्पा (पति) की उपेक्षा, एकाएक रसूख बना लेने वाले सनातन और पंचानन (पुत्र) की बेरुखी ने वर्चस्व न बनने दिया। ऐसी बेखबर रहीं कि विरोध करने का ख्याल न आया। कभी आया तो दृढ़ होकर विरोध करने की जरूरत न समझी। अब लग रहा है जिस निर्भय भाव से स्थितियों पर सोच रही हैं, बहुत पहले सोच लेना चाहिये था।

अम्मा के पचहत्तर वर्षों की आखिरी मियाद।

पप्पा के न रहने पर फेमिली पेंशन जो रिवाइज होते हुये आज की तारीख में लगभग बीस हजार है जबसे मिलने लगी है जीवन से मोह हो गया है। दिल में करार है। अद्वितीय सा सुख महसूस करती हैं। मालामाल होने जैसा फील आता है। जीवन की जरूरतें ही नहीं, शौक इस तरह पूरे करना चाहती हैं जिसे साधारण बोल-चाल में पैसे उड़ाना कहते हैं। स्वर्ण के मार्केट रेट की जानकारी रखना उनका पसंदीदा शौक बन गया है। यद्यपि बड़ी बहू अवंती और छोटी सरस ने अम्मा को चेन और टाँप्स के अतिरिक्त न कुछ पहने देखा है न झुमका और झूमर खरीदते लेकिन सरस क्षेपक की तरह जोड़ देती है ‘‘यम का भैंसा चाहे जिस तारीख को लेने आ जाये पर खरीदेंगी झुमका और झूमर।’’

अम्मा के पास कभी पैसा नहीं रहा। अतृप्त कामनाओं-कल्पनाओं को सोने का भाव पॅूछ कर तृप्त करती हैं। जानने लगी हैं पैसा हो तो सिक्का जम जाता है। बड़े पुत्र सनातन की पुत्रियों व्यख्या और वैदेही, छोटे पुत्र

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पंचानन की पुत्री लिपि और पुत्र लालित्य को उनकी माँग पूरी कर खुद से जोड़े रहती हैं। कोई नहीं मानता पर ये चारों उन्हें घर का मुखिया मानते हैं। जिंदगी, जिंदगी की तरह लगने लगी है लेकिन हार्ट की बीमारी। एक वाल्व बदला जायेगा एक रिपेयर होगा। अम्मा हतप्रभ - क्या कहें प्रभु तुम्हारी कपट चाल ओर चिकित्सकों के झूठ को। कट्टही (नासपीटी) मधुमेह की बीमारी पहले से है अब हार्ट की बीमारी दे दी। और डाँक्टरों का झूठ - मिसेस वेद के हार्ट में बचपन से प्राब्लम रही होगी।

अम्मा लबरे (झूठे) चिकित्सक से बहस लड़ाना चाहती थी - बिरहुली (पैतृक गाँव) में हम बहुत सुख से थे। सुख में हाट खराब नहीं होता। माताराम की पहरेदारी में रहे, तब खराब हुआ होगा। हमको तो कभी बुखार भी नहीं आता था। खाँसी, जुकाम जरूर कुछ बार हुआ है।

इस बार की खाँसी .......................

रात का पता नहीं कितना बजा था। अम्मा को खाँसी शुरू हो गई। अम्म खाँसी रोकने का जतन करने लगी कि साथ वाले बिस्तर पर सो रही व्याख्या की नींद में व्यवधान पड़ेगा। दिल्ली से चार दिन को आई है। मेडिकल की जबर पढ़ाई। सनातन या पंचानन जब उपकार दिखाते हैं ‘‘अम्मा तुम्हें हम लोग अपने साथ रखे हुये हैं, बात-बात में तन्नाया न करो।’’

तब पिता और चाचा को दुरुस्त कर व्याख्या, अम्मा का दिल जीत लेती है ‘‘अम्मा, हमारे साथ नहीं, हम अम्मा के साथ रहते हैं। यह पुश्तैनी घर है। पहला हक अम्मा का है।’’

खाँसी थमती न थी। बैचैनी, घबराहट, घुटन के कारण अम्मा भली प्रकार साँस नहीं ले पा रही थी। खाँसी से व्याख्या की नींद खुल गई। देखा अम्मा निठाल हैं -

‘‘क्या है अम्मा ?’’

‘‘मर जायेंगे ............... अभी ........... यही टाइम ................. गूड़ा ...............।’’

अम्मा व्याख्या के नाम का सही उच्चारण नहीं कर पाती हैं अतः गूड़ा कहती हैं।

एम0बी0बी0एस0 तृतीय वर्ष की छात्रा व्याख्या, घातक स्थिति को समझ गई। उसने सनातन और अवंती को जगा दिया। नींद नष्ट होने से सनसना गये सनातन ने कमरे का द्वार खोला -

‘‘क्या है ?’’

‘‘पापा, अम्मा को अस्पताल ले चलो। तुरंत।’’

सनातन की इच्छा हुई अम्मा की चमची के मुँह में एडहेसिव टेप चिपका दे।

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‘‘क्या हो गया अम्मा को ? इतनी रात को कहाँ ले जायें व्यख्या ?’’

‘‘पापा समथिंग सीरियस ................ माँ तुरंत चलना पड़ंगा।‘‘

‘‘देखती हूँ’’ कह कर अवंती, अम्मा के कमरे में चली गई। सनातन अड़ा रहा ‘‘कैसे ले चलूँ ? घर में एक ठो कार है, जिसे पंचानन लिये रहता है।’’

सोहावल के बैंक में पदस्थ पंचानन ने पप्पा की कार हथिया ली है कि सोहावल से गृह नगर आने के लिये वक्त पर वाहन नहीं मिलते।

व्याख्या ने तेजी दिखाई ‘‘वाइक है न। मैं अम्मा को पकड़ कर पीछे बैठ जाऊॅंगी। माँ, सरस चाची के साथ एक्टिवा में चलेगी।’’

बाइक चलाते हुये सनातन दुश्वारियाँ सुनाता रहा कि सोहावल में डटा पंचानन लफड़ों से बचा रहता है और वह यहाँ रहने का अंजाम भुगत रहा है। रुद्ध सॉंसें लिये अम्मा बाइक में सनातन और व्याख्या के मध्य फॅंसी बैठी रहीं। व्याख्या न होती तो यह राम नाम सत्य है .................. उच्चारने के लिये सुबह अपने कमरे से निकलता।

तमाम परीक्षण झेलती अम्मा नर्सिंग होम में पाँच दिन भर्ती रहीं। छुट्टी देने से पहले चिकित्सक ने सनातन को अपने चैम्बर में बुलाया -

‘‘आप, अपनी मदर को वक्त पर यहाँ ले आये वरना कुछ भी हो सकता था। उन्हें हार्ट प्राब्लम है। जहाँ तक मैं समझता हूँ सर्जरी करानी पड़ेगी। जैसे ही यात्रा करने लायक हों उन्हें किसी अच्छे हार्ट रिसर्च सेंटर में दिखायें।’’

‘‘डाँक्टर साहब अम्मा एक्यूट डायबिटिक हैं। इन्सुलिन का इंजेक्शन दिया जाता है।’’

‘‘कोई फर्क नहीं पड़ता।’’

‘‘उम्र अधिक है।’’

‘‘केस होपलेस है या नहीं है, यह डाँक्टर बतायेंगे।’’

‘‘अम्मा सर्जरी के लिये तैयार नहीं होंगी।’’

‘‘मैं समझा देता हूँ आइये।’’

सनातन की असहमति से निष्प्रभावी चिकित्सक कुर्सी से झटके से उठे और अम्मा के रूम में जा पहुँचे।

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पीछे-पीछे सताया हुआ सा सनातन।

चिकित्सक सनकी हैं या जिद्दी। सीधे पूँछ लिया -

‘‘सर्जरी करायेंगी ? पाँच-दस साल उम्र बढ़ जायेगी।’’

स्थिति बूझती अम्मा शिथिल हैं ‘‘सरजरी माने ?’’

‘‘आपरेशन।’’

अम्मा क्या कहें ? उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की प्राणशास्त्री की व्याख्याता सरस ने एक दिन विद्यालय से छुट्टी न ली, सत्तर किलोमीटर की कुल दूरी है लेकिन पंचानन देखने नहीं आया। वही शनिवार की शाम को आता है, सोमवार की सुबह रफू चक्कर। गूड़ा रुकना चाहती थी लेकिन ट्रेन में कल का रिजर्वेशन है, फिर इतनी जल्दी नहीं मिलेगा कह कर सनातन ने उसे रफा-दफा कर दिया। सनातन के चेहरे, क्रिया, चुप्पी में हमेशा जो असहमति दिखती है इतनी अधिक दिख रही है कि चेहरा बदरंग हो रहा है। अवंती और यामिनी (इसी नगर में रहती अम्मा की पुत्री) ने जरूर सेवा की।

अम्मा ने निर्णय सनातन पर डाल दिया -

‘‘सनातन कहेगा तो हम आपरेशन करा लेंगे।’’

सनातन ने अम्मा को इस तरह देखा कि उनके दिल को चोट जरूर पहुँचे। मैं सोचता था सर्जरी करा कर बुढ़ापे में तुम अपनी दुर्गति नहीं कराना चाहोगी पर तुम तो अमर हो जाना चाहती हो। पचहत्तर पूरा कर चुकी हो। और कितना जिओगी ? कितने लोग जीते हैं इतना ?

चिकित्सक ने आश्वस्त किया ‘‘सनातन तैयार हैं। हिम्मत आपको करनी है। वैसे आपने बहुत हिम्मत दिखाई है। वरना बूढ़े मरीज ऐसा कराहते-चिल्लाते हैं जैसे मरने वाले हैं।’’

‘‘आपरेशन में कितना खर्चा आयेगा डाँक्टर साहब ?’’

अम्मा वित्त का मामला स्पष्ट कर लेना चाहती हैं। उनकी पेंशन से उपचार हो जाये तो पूतों पर वित्त भार नहीं पड़ेगा। जानती हैं पूतों की खूफिया नजर उनके बैंक खाते पर हैं। दोनों की मंशा है अम्मा जरूरत भर को पैसा निकालें बाकी पैसे से छेड़-छाड़ न करें। पेंशन का हिसाब-किताब रखा जाता है जैसा आभास पाकर अम्मा चतुर होती गई हैं। अवंती को अपना सेक्रेटरी बनाये हुये हैं। प्रपत्र पर हस्ताक्षर कर कभी अवंती को बैंक भेजती हैं कभी बाहर की रौनक देखने के लिये रिक्शे में सवार हो खुद उसके साथ जाती है। तेज मिजाज पप्पा की तरह तेज मिजाज सनातन अरुण नेत्रों को भाल पर चढ़ा कर अवंती से आँकड़ें जान लेता है जबकि पंचानन अकबकाया रहता है। अवंती भाभी, अम्मा का बही खाता सम्भाल रही हैं लेकिन बेवकूफ सरस को विद्यालय से फुर्सत नहीं।

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‘‘आपके दो बेटे हैं। खर्च की चिंता क्यों करती हैं ?’’

अम्मा को भरोसा दे रहे चिकित्सक, सनातन को सट्टेबाज लग रहे हैं। मरीजों को लुभाना और लूटना इनकी वृत्ति है। जेब से तो हमारे जायेगा (जबकि अम्मा के बैंक खाते से)। मधुमेह है, अंतिम उम्र की शिथिलता है। सर्जरी न झेल पाईं, ओ0टी0 में टें हो गईं तो बैंक में जोड़ रखी पेंशन तो स्वाहा होगी ही, पेंशन भी बंद। सर्जरी हुई तो दिल्ली में कितने दिन रहना होगा मालूम नहीं। क्या व्यवस्था होगी मालूम नहीं। इस खानदान में न किसी की सर्जरी हुई न कोई उपचार कराने दिल्ली गया। बीस हजार क्या पा रही है अम्मा को दिखावा करना है।